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प्रस्तावना
वर्षा ऋतु का अर्थ – वह ऋतु या महीने जिसमें वर्षा होती हैं। कड़कती गर्मी के बाद जून और जुलाई के महीने में वर्षा ऋतु का आगमन होता है और लोगों को गर्मी से राहत मिलती है। वर्षा ऋतु के आते ही मौसम बहुत ही सुहाना हो जाता है। वर्षा ऋतु के आते ही लोगों में खासकर किसानों में खुशियों का संचार हो जाता हैं। वर्षा ऋतु सिर्फ गर्मी से ही राहत नहीं देता बल्कि खेतीहर किसानों के लिए वरदान है।
वर्षा होने कारण ( Varsha Ritu par Nibandh )
वर्षा ऋतु के दिनों में जब कभी नमी वाली गर्म हवा किसी ठण्डे और उच्च दबाव वाले वातावरण के सम्पर्क में आ जाता है तब बारिश होती हैं । गर्म हवा में ठण्डी हवा से ज्यादा पानी इकट्ठा करती है और जब यह हवा अपने अन्दर इकट्ठे पानी को ऊंचाई पर ले जाती है तो ठण्डे जलवायु में मिल जाती हैं और अपने अन्दर का जमा हुआ पानी के भारी हो जाने के कारण नीचे गिरने लगती हैं।
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वर्षा के प्रकार ( Varsha Ritu par Nibandh )
उत्पत्ति के अनुसार वर्षा तीन प्रकार की होती हैं । संवहनी वर्षा, पर्वतीय वर्षा एवं चक्रवाती वर्षा ।
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संवहनी वर्षा ( Varsha Ritu par Nibandh ) :-
गर्म हवा हल्की होकर संवहनी धाराओं के रूप में ऊपर उठती है, जब यह ऊपरी वायुमंडल में पहुंचती है तो कम तापमान के कारण ठंडी हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप संघनन की क्रिया होती हैं और रूपासी मेघों का निर्माण होता है। इससे अल्प काल के लिए बिजली कड़कने तथा गरज के साथ मूसलाधार वर्षा होती है।
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पर्वतीय वर्षा ( Varsha Ritu par Nibandh ) :-
आद्र हवाओं के मार्ग में किसी पर्वत की स्थिति के कारण हवाओं के ऊपर उठने तथा संघनन होने के परिणामस्वरूप होने वाली वर्षा।
चक्रवातीय वर्षा ( Varsha Ritu par Nibandh ) :-
किसी चक्रवात या अवदाब के साथ होने वाली वर्षा।
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वर्षा ऋतु का महत्व ( Varsha Ritu par Nibandh )
वर्षा को मानसून कहा जाता हैं । भारत के कई हिस्सों में मानसून में खूब बारिश होती हैं। इस मौसम में जितने मेहरबान बादल धरती पर होते हैं वैसे ही इस मौसम में कई सारे त्यौहार आते हैं। भाई बहन का त्यौहार रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी जैसे कई त्यौहार वर्षा ऋतु में मनाये जाते हैं। वर्षा ऋतु का मानव जीवन में बेहद महत्व है क्योंकि पानी बिना जीवन संभव नहीं है।
वर्षा ऋतु में फसलों के लिए पानी मिलता है तथा सुखे हुए कुएं तालाब नदियों एवं भूमिगत जलस्तर को फिर से भरने का कार्य वर्षा के द्वारा ही किया जाता है इसलिए कहा जाता है जल है तो कल है। वर्षा से गर्मी का प्रकोप कम होता है और वातावरण में शीतलता आती है। वर्षा ऋतु में वर्षा होने से ही किसानों के लिए खेती हेतु पानी मिलता है और फसलें विकसित होती हैं। वर्षा का जल पीने के पानी का एक स्त्रोत भी है। बहुत सी जगह ऐसी है जहां वर्षा का पानी संचय कर उसी को पुरे साल पीने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
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वर्षा ऋतु के हानिकारक प्रभाव ( Varsha Ritu par Nibandh )
वर्षा ऋतु में बहुत अधिक वर्षा होने से सड़कों पर जलभराव होने से यातायात प्रभावित होती हैं और आवागमन में असुविधा होती हैं। वर्षा ऋतु में हर जगह कीचड़ जमा हो जाता है और गंदगी भी बढ़ जाती है। इस मौसम में विद्युत के खम्भों में करंट लगने की संभावना बढ़ जाती है और जो दुर्घटना को निमंत्रण देती है। अत्यधिक वर्षा होने से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाता है।
बाढ़ से मानव जीवन प्रभावित होती हैं और लोगों के घर व मकानें बह जाती हैं तथा जन व धन की हानि होती हैं। वर्षा ऋतु में जगह – जगह जलभराव होने से अनेक प्रकार के जीव जन्तु पैदा हो जाता है जो विभिन्न प्रकार के बिमारियों कारण बनते हैं।
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उपसंहार ( Varsha Ritu par Nibandh )
वर्षा ऋतु में वर्षा के कारण माहौल शर्द हो जाता है और विभिन्न प्रकार के वनस्पति उगते लगती है । चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देता है। इस मौसम में पेड़ पौधे जल्दी उगते हैं और लगातार हो रही वनों की कटाई से वातावरण में गर्मी बढ़ गई हैं। इसलिए हमें वर्षा ऋतु में पौधे लगाना चाहिए और वर्षा के जल को भविष्य के लिए संग्रह करना चाहिए।