निषेचन किसे कहते हैं | Nishechan kise kahate hain

Nishechan kise kahate hain – पुष्पीय पौधों में परिपक्व वर्तिकाग्र पर उसी प्रजाति के पराग कण पहुंचते हैं तो उसे परागण कहते हैं , परागण की क्रिया में आगे चलकर जब इन नर ( male ) तथा मादा ( female ) जनन इकाइयों का संयोजन ( fusion ) होता है, इसे निषेचन ( Fertilization) कहते हैं ।

नर ( male ) तथा मादा ( female) जनन इकाइयों ( शुक्राणु तथा अण्डाणु ) का संयोजन ( fusion ) निषेचन ( Fertilization ) कहलाता हैं ।

एक परिपक्व वर्तिकाग्र ( stigma ) पर परागकणों ( pollen grains ) के पहुंचने की क्रिया परागण कहलाती हैं। कोई परागकण वर्तिकाग्र पर ही अंकुरित होता है। इसमें किसी जनन छिद्र ( germ pore ) से निकलकर पराग नलिका वर्तिकाग्र के अंदर प्रवेश करती है तथा वर्तिका ( style) में होती हुई अण्डाशय ( ovary ) में पहुंचती है और भ्रूणपोष में ही नर व मादा युग्मको का मिलन होता है ,जिसे निषेचन ( Fertilization ) होता है ।

Nishechan kise kahate hain
Nishechan kise kahate hain

परागकण का अंकुरण तथा पराग नलिका का अण्डाशय में प्रवेश ( Germination of pollen grain and entry of pollen tube into ovary )

परागकोष के फटने पर परागकण परागण के द्वारा जायांग के वर्तिकाग्र ( stigma) पर चिपक जाते हैं परागकण वर्तिकाग्र की सतह से पोषक पदार्थ अवशोषित कर अंकुरित होते हैं तथा पराग नलिका ( pollen tube ) बनाते हैं ।

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इस नलिका के सिरे पर दो युग्मक ( male gametes ) होते हैं , पराग नलिका का सिरा विशेष प्रकार के एंजाइम का निर्माण करता है जो वर्तिकाग्र के ऊतकों को गला देते है तथा नलिका आसानी से वृद्धि करके वर्तिका में होती हुई भ्रूणपोष तक पहुंच जाती हैं ।

जब पराग नलिका भ्रूणकोष अथवा अण्डाशय में प्रवेश करती हैं। भ्रूणकोष में आठ केंद्रक होते हैं तीन एक ध्रुव पर प्रतिमुख ( antipodal) , तीन दूसरे ध्रुव पर अण्डसमुच्चय ( egg apparatus) तथा दो मध्य भाग संयोजित में होकर सेकेण्डरी केन्द्रक बनाते हैं ।

परागनलिका के सिरे के फटने से दोनों पुंयुग्मक ( male gametes) स्वतंत्र हो जाते है। इनमें से एक अण्ड से संयोजन करके निषित्कांड या ऊस्पोर तथा दूसरा सेकेण्डरी केन्द्रक से संयोजन करके भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है। केन्द्रको को इस प्रकार का संयोजन निषेचन कहलाता हैं।

परागनलिका का बीजाण्ड में प्रवेश ( Entry of pollen grain tube into an ovule )

पराग नलिका जब अण्डाशय की गुहा में पहुंचती है तो किसी एक बीजाण्ड में निम्न प्रकार से प्रवेश कर सकती है :-

( अ )बीजाण्डद्वारीय प्रवेश(Porogamy)

( ब ) निभागीय प्रवेश (Chalazogamy)

( स ) अध्यावरणीय प्रवेश (Mesogamy)

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पराग नलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश तथा नरयुग्मकों का स्वतंत्र होना ( Entry of pollen tube into embryo sac and Liberation of male gametes )

परागनलिका बीजाण्ड में प्रवेश करने के उपरांत बीजाण्डकाय ( Nucellus ) को भेदती हुई भ्रूणकोष में पहुंच जाती है । Nishechan kise kahate hain पराग नलिका का अन्तिम सिरा अण्ड उपकरण ( egg apparatus) और अण्ड कोशिका ( egg cell ) को भेदते हुए भ्रूणकोष में प्रवेश कर जाता है।

( 1 ) पराग नलिका के अग्र सिरे पर दो छिद्र बन जाते हैं । इसमें से प्रत्येक छिद्र से एक नरयुग्मक ( male gametes) स्वतंत्र हो जाता हैं।

( 2 ) पराग नलिका, भ्रूणकोष में पहुंच कर अग्र सिरे पर फट ( burst ) जाती है और दोनों नरयुग्मक स्वतंत्र हो जाते हैं ।

( 3 ) कभी – कभी ऐसा होता है कि पराग नलिका अपने अग्र सिरे पर दो भागों में विभाजित हो जाती है । इनमें से एक सिरा अण्ड उपकरण की ओर तथा दूसरा द्वितीयक केन्द्रक की ओर बढ़ता है। आगे चलकर दोनों ही भाग अपने – अपने अग्र सिरे से विघटित हो जाते हैं ।

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निषेचन के प्रकार Type of Fertilization

निषेचन दो प्रकार के होते हैं :-

( 1 ) बाह्य निषेचन ( external Fertilization)

जब निषेचन शरीर के बाहर होता है तो उसे बाह्य निषेचन कहलाता है ।

Nishechan kise kahate hain अधिकांश अकशेरुकीय जन्तु तथा मेंढक आदि में मादा अपने अण्डे जल में देती है और नर भी अपने शुक्राणुओं को जल छोड़ देता है । जिससे ये शुक्राणु जल में गति करके अण्डों के साथ संलयित ( fuse) हो जाते हैं। अतः अण्डों का निषेचन मादा के शरीर से बाहर होता है, इसलिए इसे बाह्य निषेचन ( external Fertilization) कहते हैं ।

( 2 ) आन्तरिक निषेचन ( Internal Fertilization)

जब निषेचन शरीर के अंदर होता है तो उसे आंतरिक निषेचन कहलाता है ।

Nishechan kise kahate hain मानव में मादा के शरीर अन्दर होता है । नर के वृषण में बने शुक्राणु मैथुन के समय मादा की योनि में शिश्न द्वारा स्थापित होते हैं। केवल एक शुक्राणु इस अण्ड के साथ अण्डवाहिनी में संलयित होता है और एक युग्मनज ( zygote ) बनाता है। इस क्रिया को आन्तरिक निषेचन कहते हैं ।

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अनिषेकजनन( Parthenogenesis )

प्रजनन की वह विधि जिससे अंड या मादा युग्मक बिना निषेचन के भ्रूण तथा नए जीव में विकसित हो जाता है अनिषेकजनन कहलाता है।

प्रजनन = शुक्राणु ( नर युग्मनज ) + अंडाणु ( मादा युग्मक ) = भ्रूण = जीव

यदि किसी कारणवश संलयन अथवा निषेचन की क्रिया पूर्ण न हो , तो नर युग्मक तो मर जाता है परन्तु कभी – कभी मादा युग्मक में विकास की क्रिया होती है और अनिषेचित जीव बनता है । इस क्रिया को अनिषेक जनन ( Parthenogenesis ) कहते हैं।

Parthenogenesis = पार्थीनो + जेनेसिस

पार्थीनोजेनेसिस का शाब्दिक अर्थ है – लैंगिक जनन के बिना मादा युग्मक से नवीन जीवन की उत्पत्ति होना होता है ।

निषेचन के बिना ही मादा युग्मक से सीधे नए जीव बन जाए तो उसे ही अनिषेकजनन कहते हैं जैसे – कुछ मधुमक्खियों में , छिपकली में , टर्की पक्षी , यूरोथ्रीक्स , स्पायरोगायरा , के कुछ जातियों में इसी प्रकार का प्रजनन पाया जाता है ।

अनिषेकजनन का सर्वप्रथम ओवेन (1849) के द्वारा किया गया था। उसके अनुसार ” मादा युग्मक का नर युग्मक से संयोजन न होने पर भी यदि भ्रूण का विकास हो तो इस प्रक्रिया को अनिषेकजनन कहते हैं “।

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