प्रस्तावना
Durga puja par Nibandh – दुर्गा पूजा हिन्दुओं द्वारा मनाए जाने वाला प्रमुख त्योहारों में से एक है। दुर्गा पूजा को नवरात्रि एवं दुर्गाष्टमी भी कहा जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार वर्ष में दो बार दुर्गा पूजा/नवरात्रि मनाया जाता है, चैत्र नवरात्र व क्वांर (अश्विन) को। चैत्र नवरात्रि में केवल मंदिरों में स्थापित दुर्गा माता की विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है जबकि क्वांर में जगह – जगह दुर्गा माता की मूर्तियां स्थापित किया जाता है।
यह पुजा पुरे भारत में बड़े ही उत्साह एवं धुमधाम से मनाया जाता हैं। इस अवसर पर लोग माता दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं। यह पर्व दस दिनों तक चलता है अश्विन के शुक्ल पक्ष से आरंभ होता है और विभिन्न स्थानों पर भक्तजन कलश स्थापित कर दुर्गा पूजा प्रारंभ करते हैं और रोज दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है।
दुर्गा पूजा का इतिहास
Durga puja par Nibandh – माता दुर्गा देवी नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा। माता ने शताक्षी स्वरूप धारण किया और उसके बाद शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुई शाकंभरी देवी ने ही दुर्गमासुर का वध किया, जिसके कारण वे समस्त ब्रह्माण्ड में दुर्गा देवी के नाम से विख्यात हो गई। इस पर्व के साथ कई प्राचीन कहानियां जुड़ी हुई है। दशहरा भी दुर्गा पूजा के दसवें दिन मनाया जाता है।
दशहरा शब्द का शाब्दिक अर्थ है दश हारा होता है। भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध से ठीक पहले माता दुर्गा की पूजा अर्चना कर दसमीं के दिन अधर्मी रावण का वध कर समस्त संसार को उसके अत्याचार से मुक्त किया। इसी दिन दुर्गा देवी ने इससे पहले महिषासुर को भी मारा था इसलिए इस दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
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दुर्गा पूजा उत्सव
दुर्गा पूजा का त्यौहार स्त्रियों के सम्मान और दुर्गा देवी की शक्ति को दर्शाता है। मां दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है, यह माना जाता हैं कि मां दुर्गा ने पूरे दस दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसे मार डाला। इस विजय की खुशी के कारण हम दुर्गा पूजा का महान पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
Durga puja par Nibandh – दुर्गा पूजा का त्यौहार हर जगह अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है। इसमें पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा सबसे विख्यात है। इस पर्व के अवसर पर बाजारों में दुकानें सुंदर फूल, नारियल , चुनरी और मूर्तियों से सजने लगती है। जगह जगह पर मां दुर्गा के बड़े बड़े पंडाल सजाए जाते हैं। बहुत से गांवों में रामलीला , नाटक , दांडिका, गरबा आदि विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
दुर्गा पूजा में लोग नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा करते हैं एवं मां दुर्गा का नौ दिन तक उपवास रखकर उनसे सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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दुर्गा पूजा की कथा
महिषासुर नामक एक बहुत ही शक्तिशाली दैत्य था। महिषासुर को कोई भी परास्त नहीं कर सकता था। एक बार महिषासुर ने देवताओं पर विजय पाने के उद्देश्य से उसने स्वर्ग में भी आक्रमण कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। तब भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश (शिव) के द्वारा एक आन्तरिक शक्ति का निर्माण किया गया,जिनका नाम दुर्गा रखा गया।
Durga puja par Nibandh – मां दुर्गा दस हाथों वाली और सभी हाथों में विशेष हथियारों को धारण करने वाली एक अद्भुत नारी शक्ति थी। मां दुर्गा को महिषासुर का विनाश करने के लिए कई आन्तरिक शक्तियां प्रदान की गई थी। पूरे नौ दिन की युद्ध के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर को दसवें दिन मार गिराया था। उस दिन को ही दशहरा या विजयादशमी भी कहा जाता है।
यह भी माना जाता है कि मां दुर्गा की पूजा तब से शुरू हुई , जब भगवान राम ने लंका के राजा असुर राज रावण को परास्त करने के लिए और देवी दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की पूजा की थी । मां दुर्गा की पूजा करने के बाद ही भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।
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दुर्गा पूजा का महत्व
नवरात्री या दुर्गा पूजा का त्यौहार बहुत अधिक महत्व रखता है। नवरात्रि का अर्थ नौ रात होता है। दसवां दिन दशहरा या विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। यह वह दिन होता है , जिस दिन देवी दुर्गा ने राक्षस के ऊपर नौ दिनों और नौ रातों के युद्ध के बाद विजय प्राप्त की थी। लोगों द्वारा देवी दुर्गा की पूजा अर्चना , ताकत और आशीर्वाद पाने के लिए की जाती है ।
मां दुर्गा अपने भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक विचारों को हटाने के साथ ही शांतिपूर्ण जीवन देने में सहायता करती है। यह भगवान राम की बुराई, रावण के ऊपर जीत के उपलक्ष में भी मनाया जाता है। लोग इस त्यौहार को दशहरा की रात रावण के बड़े पुतले और पटाखों को जलाकर मनाते हैं।
उपसंहार
दुर्गा पूजा को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। हमें भी अपने जीवन में अनुशासन और मर्यादा में रहकर अपने और समाज को नकारात्मक ऊर्जा से बचने हेतु मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर उनसे सुख समृद्धि और सफलता का वर प्राप्त करना चाहिए ।
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